Kis Kisko Pyaar Karoon 2 Review: पुराने फॉर्मूले पर बनी हल्की-फुल्की कॉमेडी
Movie Review: 10 साल बाद कपिल शर्मा (Kapil Sharma) 'किस किसको प्यार करूं' का सीक्वल लेकर आए हैं। इस बार वह तीन नहीं बल्कि चार-चार बीवियों के साथ फंसे हुए हैं।

Bollywood; करीब दस साल पहले आई ‘किस किस को प्यार करूं’ (Kis Kisko Pyaar Karoon) से कामेडियन कपिल शर्मा (Kapil Sharma) ने बड़े पर्दे पर अभिनय की शुरुआत की थी। उस फिल्म में हीरो परिस्थितियों के कारण तीन शादियों के जंजाल में फंस जाता है जबकि उसका दिल किसी और के लिए धड़कता है। एक दशक बाद आए इसके सीक्वल का मूल आधार भी लगभग वैसा ही है। हालांकि कहानी, पात्र और स्थान अलग हैं, लेकिन केंद्रीय सूत्र वही उलझनों और गलतफहमियों से उपजा हास्य है। बदलते सिनेमाई दौर के बावजूद यह फिल्म मूल कथा, संरचना का दोहराव अधिक लगती है।
किस किसको प्यार करूं 2 की कैसी है कहानी?
फिल्म की कहानी भोपाल से शुरू होती है, जहां मोहन शर्मा (कपिल शर्मा) अपनी प्रेमिका सान्या (हीरा वरीना) से बेइंतहा मोहब्बत करता है। दोनों अलग धर्म के हैं, इसलिए परिवार उनके रिश्ते के खिलाफ खड़े हैं। जब वे रजिस्ट्री मैरिज करने पहुंचते हैं, तो परिजन वहीं हंगामा खड़ा कर देते हैं। सान्या को पाने के लिए मोहन अपना धर्म बदलकर महमूद बन जाने का फैसला लेता है।
इसी बीच सान्या के पिता उसकी शादी किसी और लड़के से तय कर देते हैं, पर जैसे ही उन्हें मोहन के धर्म परिवर्तन करके महमूद बनने का पता चलता है वे राजी हो जाते हैं। सान्या के पिता (विपिन शर्मा) उसे सरप्राइज देना चाहते है, पर घटनाओं की उलझन इतनी बढ़ जाती है कि महमूद का निकाह रूही (आयशा खान) से हो जाता है।
दूसरी ओर मोहन के माता-पिता उसे जबरन मीरा (त्रिधा चौधरी) के साथ शादी के बंधन में बांध देते हैं। तभी सान्या का फोन आता है कि वह गोवा पहुंच चुकी है और उसने ईसाई धर्म अपना लिया है और सामूहिक विवाह में मोहन से शादी करना चाहती है। मोहन का जिगरी दोस्त हबी (मनजोत सिंह) उसकी हर शादी का गवाह भी बनता है और हर मुसीबत में उसके साथ रहता है। हबी ही गोवा जाने का इंतजाम करता है। मीरा और रूही भी अलग-अलग परिस्थितियों में गोवा पहुंच जाती हैं।
कहां चूकी फिल्म?
फिल्म एक सिरे से बेसिर-पैर की कॉमेडी है जहां तर्क की तलाश बेमानी है। कई दृश्य घिसे-पिटे महसूस होते हैं, खासकर वे पल जहां दोनों पत्नियां मोहन से एक जैसे संवाद बोलती हैं ट्रेन पटरी पर जाकर जान देने की धमकी देना आदि। फिर भी बीच-बीच में कुछ संवाद चुटीले हैं और हंसी के क्षण गढ़ लेते हैं। फिल्म का एक सराहनीय पक्ष यह है कि मजाकिया घटनाओं के बीच यह सभी धर्मों के प्रति सम्मान और समानता का संदेश भी देने की कोशिश करती है। किन्नरों के नृत्य वाले दृश्य में हास्य और ऊर्जा दोनों हैं। हालांकि क्लाइमैक्स बहुत दमदार नहीं बन पाया है।




