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दीपावली पर नहीं जलते इस गांव में दीये जश्न की जगह लोग मनाते हैं शोक

दीपावली पर नहीं जलते इस गांव में दीये जश्न की जगह लोग मनाते हैं शोक

दीपावली पर नहीं जलते इस गांव में दीये जश्न की जगह लोग मनाते हैं शोक

देश में हर किसी की दीपावली के दिन का इंतजार रहता है। रोशनी का यह पर्व घर में खुशियां लाता है।
इस दिन लोग पटाखे फोड़ते हैं। घरों को दीयों और लाइट्स से सजाते हैं, खूब जश्न मनाते हैं।
लेकिन मिर्जापुर में चौहान समाज इस दिन को शोक दिवस के रूप में मनाता है।जी हां, मड़िहान तहसील के राजगढ़ इलाके में अटारी गांव और उसके आस-पास बसे लगभग आधा दर्जन गांव मटिहानी, मिशुनपुर, लालपुर,खोराडीह में दीपावली नहीं मनाई जाती। यहां बसे करीब 8 हजार चौहान समाज के लोग इस दिन शोक मनाते हैं पीढ़ी दर पीढ़ी दीपावली के दिन शोक मनाने की यह परंपरा सैकड़ों सालों से चली आ रही है., जिसका निर्वाह आज भी यह समाज बखूबी कर रहा है। दरअसल, चौहान समाज के लोग खुद को अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान का वंशज बताते हैं। उनका मानना है कि दीपावली के दिन ही मुहम्मद गोरी ने सम्राट पृथ्वीराज चौहान की हत्या की थी। उनके शव को गंधार ले जाकर दफनाया था। इसीलिए उनके समाज के लोग इस दिन शोक मनाते हैं। चौहान समाज के लोग सबसे अधिक अटारी गांव में रहते हैं। चौहान समाज के अध्यक्ष धनीराम का कहना है कि हमारे पूर्वज को इसी दिन मुहम्मद गोरी ने मारा था। यही वजह है कि हम लोग दीपावली पर अपने घरों में कोई रोशनी नहीं करते। हम लोग दीपावली के बजाय एकादशी मनाते हैं। उस दिन घरों को रोशन करते हैं।

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